एक बिज़नेस भावनाओं का








,,,साँचोर के नेहड़ क्षेत्र में बसा एक गरीब परिवार का मुखिया चेलाराम कोरोना काल मे अपने परिवार के पोषण और दवा दारू के लिए अपनी कमाई मुख्य जरिया 12 बकरियों में से 11 को बेच चुका था,,,अब भगवान से उसकी एक ही दुआ थी कि अपनी अंतिम पूंजी,,,रकम,,,या सब कुछ कही जाने वाली एक बकरी(बूटी) को बचाकर  रखें,,,,


लेकिन भगवान शायद अग्नि परीक्षा लेने पर तुला हुआ था,,,


बड़े व्यापारियों का बिचौलिया शाम के समय आ पहुँचा और केवल 5500 रुपयों में ही बूटी को बेचना तय हो गया,,,,,

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बूटी ,,,एक बकरी ही नहीं चेलाराम के परिवार की अहम सदस्य थी जो इस परिवार समस्त सुख और दुखों की गवाह रही थी,,,

चेलाराम की अनुपस्थिति में वो अन्य बकरियों की नेतृत्वकर्ता भी थी,,,,

आज,,,,

बूटी का सौदा करके चेलाराम टूट गया था लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी विकट थी कि अब कोई मार्ग भी नहीं बचा था,,,,

,,,,,,,,,एक बड़ी लम्बी गाड़ी आ पहुंची घर पर


बूटी की विदाई का वक़्त आ पहुंचा था,,,सिवाय चेलाराम के अब इन 5 मिनटों के लम्बे अंतराल के गवाह बनने को परिवार का कोई सदस्य तैयार नहीं था,,,,

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अपनी भरी आँखों से बूटी को गाड़ी पर चढ़ाया तो ऐसा लगा जैसे वो खुद सूली पर चढ़ रहा है,,,

,,पल पल पर बूटी को उसकी गलतियों पर डाँटने वाला चेला,,,, आज अपराधी बनकर बूटी से नजर मिलाने का साहस जुटाने का असफ़ल प्रयास कर रहा था,,,

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गाँधी के फोटो वाले कागज,,,,

,,इन बेशक़ीमती कागजों को पाकर यह गरीब भारतीय अपना कर्ज चुकाने को दौड़ पड़ा,,,

,,हाँ,,,24 घण्टों तक चूल्हा नहीं जला यह बूटी के त्याग और समर्पण को परिभाषित करने के लिए पर्याप्त था,,,

बूटी के जाने के 24 घण्टों के बाद का समय कैसे गुजरा,,,, इसके लिए शब्द जुटाने में असमर्थ हुँ,,,,

लेकिन इन 24 घण्टों में ऊपरवाला हार गया,,,,,

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पंचायत भवन के फोन की घण्टी ने चेलाराम की मायूसी में ख़लल पैदा की,,,,

,,,12000 की क्षतिपूर्ति का वो लम्बे समय से इंतजार कर रहा था,,,,,वो एकाउंट में जमा हो चुके थे,,,

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आज पहली बार वो अपने कदमों से नहीं हौसले से भागकर पहुँचा और पैसा जेब में आते ही,,,,,,,

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पहुँच गया,,,बूटी का सौदा उलटने,,,

दलाल ने अपनी असमर्थता जताई,,,और वो सिर्फ सूरत जैसे महानगर का एड्रेस देकर चलता बना,,,

लेकिन चेलाराम के लिए बूटी कोई पशु नहीं थी वो उसकी भावनाओं का दूसरा नाम था,,,,

,,एक रिक्शेवाले ने 50 रुपये लेकर पूरी रात भर के सफर के बाद सूरत में पहुँचे चेलाराम को एक कारखाने तक छोड़ दिया,,,,

रूह कंपाने वाला दृश्य चेलाराम ने कभी सपना भी ऐसा नहीं देखा था,,

बूटी का वंश जिस प्रकार से तबाह हो रहा था,,,,,स्तब्ध रह गया चेला,,,,

हिम्मत जुटा कर एक ऑफिस में घुसकर गिड़गिड़ाने लगा,,,पूरे छः हजार ले लो लेकिन बूटी वापस करो,,,,

उस ऑफिस में चेला को केवल मूर्ख से ज्यादा कुछ भी सुनने को नहीं मिला लेकिन एक चैलेंज भी मिला कि पचासों हजार का झुंड जो जिंदगी और मौत के बीच में सफर कर रहा है उसमें अगर बूटी को पहचान ले तो,,,,फ्री,,

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चेला और बूटी के इम्तिहान की घड़ी आ गयी थी,,,

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कुछ कारिंदों के साथ बड़े सेठ खुद यह परीक्षा देखना चाहते थे,,,

लगभग आधे किलोमीटर में फैले झुंड और मशीनों की घड़घड़ाहट में चेला ने बूटी के एक सिटी बजाई,,,,

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अपनी गर्दन पर ब्लेड चलने से पहले कानों में चिर परिचित सिटी को सुनकर झुंड में से बूटी ने जो छलांग लगाई वो,,,,भारतीय संस्कृति की पहचान बन गयी,,,,,

,,,छंद क्षणों में अपने मालिक से लिपट गयी बूटी,,,,

,,,,पिता पुत्री का मिलन,, हो जैसे,,,

भौंचक्का रह गया बहुत बड़ा सेठ,,, आज पहली बार उसको लगा कि वो जो कर रहा है पशुओं का बिज़नेस नहीं है,,,,

वो ,,,,

एक भावनाओं का व्यापार है,,,,चेलाराम और बूटी जंग जीतकर घर पहुंच गए,,,,

,,,,ईमानदारी की जंग में ईश्वर ने साथ दिया,,,, पातालेश्वर महादेव की जय हो ।।

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