कोरोना वायरस के डर से सिस्टम की मजबूरी

"  कोरोना का डर "
कोरोना वायरस के डर से सिस्टम की मजबूरी।


,,,,,,कल पहली बार कोरोना को इतना नजदीक से देखकर गाँव का हर शख्स सहम गया,,,,सभी लोग फोन के माध्यम से अपने अपनों से जो वरिष्ठ है उनसे सलाह माँगते नजर आए,,,,कुछ लोग सलाह देते नजर आए,,,,वाट्सएप के सभी ग्रुप जो राजनीति के अखाड़े बन चुके थे कल के दिन वो भी कोरेन्टीन सेंटर की तरह खामोश नजर आए,,,,,,,,,,,,कुल मिलाकर एक बात साफ हो गई कि सबसे बड़ा डर मौत का ही है,,,,यहाँ उम्र का कोई अर्थ नहीं रहता,,,,,,
मोबाइल और tv के माध्यम से इस बीमारी का जो फोबिया पैदा किया गया है वो इस वायरस से भी घातक है ,,,,,,,,,हाँ यह सच है हमें अपने आपको संक्रमित होने से बचाना है लेकिन इतना सवेंदनशील भी नहीं होना है कि रात को नींद लेना भी चुनौती हो जाये,,,,,,,,,
एम्बुलेंस के जो हॉर्न कदाचित व्यस्त ट्राफिक से साइड माँगने का जरिया होता है आज वो गाँव की भोली भाली जनता के रोंगटे खड़े करने का काम करता है,,,,एम्बुलेंस का ड्राइवर भी भूल से अपने आप को शायद पायलट समझ बैठा,,,,,,,,,
          आज सभी बुद्धजीवी मित्रों से मेरी विनती है कि इस अनपढ़ और संवेदनशील जनता को इस बीमारी की वास्तविकता बताए ,,,,,उनको यह अवश्य बताएं कि इस बीमारी की डेथ रेट (मृत्यु दर) हमारे देश में केवल चार प्रतिशत ही है ,,,,हमें अपनी विल पॉवर को जिंदा रखना है,,,और यह भी विश्वास करना है कि हम जिस वातावरण में जी रहे है (35 से 45 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान),,,,वहाँ कोरोना का वायरस भी चक्कर खाता है,,,,,,इतनी भयंकर गर्मी में कफ बनना बहुत मुश्किल होता है,,,,,हम सेफ है इसमें कोई संदेह नहीं लेकिन हाँ यह भी बहुत बड़ा सच है कि हमे हमारे स्वास्थ्य विभाग की गाइड लाइन को फॉलो करना है और स्वानुशासन में रहकर इस जंग को जीतना है,,,,,,,,


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