वक्त कब क्या करवट बैठता है , वक्त को ही पता है

रमकूड़ी -झमकूड़ी (भाग्य लक्ष्मी),देराणी-जेठाणी,मामा-भांजा, लटक मत पटक दूंगी,रामभरोसे, आ तो यूँ ही हाले ला ,सो करती चूंचाड़ छोटा,,,,,राख,
मैं तुलसी तेरे आंगन की जैसे अल्फाजों से सजी -सँवरी जिसका जीवन ,,,,,,,,,
  नब्बे के दशक में अपने सम्पूर्ण यौवन पर रहा यह वाहन बारात में भी प्रमुखता से प्रयोग में लिया गया ! ड्राइवर के पास आगे की सीट पर बैठे दुल्हेराजा , ऊपर कैबिन पर बैठे #वडजानी , पीछे डोले में खङे - बैठे बाराती और बारात के पहुंचने से पूर्व #मांगणिहार के दूए अब इस वाहन की यादों में शेष रहेंगे !

    बाङमेर , जैसलमेर , बीकानेर के दुर्गम क्षैत्रों तक निर्माण सामग्री पहुंचाना , कृषि उत्पाद , चारा परिवहन में भी एकमात्र वाहन यही रहा , कि जिसनें मरूधरा संग अपनी सुहानी संगत निभाई !!

     वक्त कब क्या करवट बैठता है , वक्त को ही पता है





कोई दिन भारतीय सेना का आधार , तो कोई दिन धोरों का राज रही #निशान_गट्टूङा गाङी , आज विलुप्तप्राय ! आगे पुल्ली लगाकर #एक_दो_तीन... कहकर इँजन स्टार्ट करना , बाहर लगे स्पीकर से तेज आवाज में बजते कैसेट , कहीं ज्यादा रेत आने पर लौहे के चैनल बिछाना , पार करते ही उठाकर पुन: बिछाना , छठे - सातवेंं पैडल पर प्रेशर बनने के बाद लगते ब्रेक !!

    नब्बे के दशक में अपने सम्पूर्ण यौवन पर रहा यह वाहन अब कबाङ हो चुका है !!

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