मासूम बेटे की दर्दनाक मौत ने बदल दिया जीवन


Rumadevi

 मासूम बेटे की दर्दनाक मौत ने बदल दिया जीवन का उदेश्य
कुछ कर गुजरने की चाह हो तो नामुमकिन काम भी मुमकिन सा  लगने लगता है, ऐसी ही एक शख्सियत हैं राजस्थान की रूमा देवी जिन्होंने सिर्फ 8वीं तक पढ़ाई करने के बावजूद भी दुनियाभर में देश का नाम रोशन किया।

राजस्थान के छोटे से गांव बाड़मेर की रहने वाली 8वीं पास रूमा देवी का बचपन गरीबी में ही गुज़रा। 5 साल की उम्र में उन्होंने अपनी मां को खो दिया, जिसके बाद उनके पिता ने दूसरी शादी रचा ली और रूमा देवी को अपने चाचा के पास रहना पड़ा। वह लगभग दस किलोमीटर दूर से पानी भरकर बैलगाड़ी से घर तक लाती थीं। परिवार वालों ने घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए उनकी शादी जल्दी ही कर दी, लेकिन ससुराल में भी आर्थिक तंगी से उनका पीछा नहीं छुटा और जैसे - तैसे करके परिवार का गुज़ारा होता रहा। शादी के लगभग डेढ़ साल बाद उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया, जिसके बाद उनके परिवार में चारों तरफ खुशी ही खुशी छा गई । लेकिन किस्मत को और कुछ  ही मंज़ूर था और किसी बीमारी से ग्रसित होने की वजह से 48 घंटे के अंदर ही उनके बच्चे ने दम तोड़ दिया।

उस वक़्त रूमा देवी के पास इतने भी पैसे नहीं थे कि किसी अच्छे अस्पताल में जाकर उसका इलाज करा पाती ।  इस घटना का उन्हें गहरा सदमा पहुंचा और अपनी संतान को खोने पर उन्हें एहसास हुआ , उनके जैसी और भी कई महिलाएं होंगी जो पैसे के अभाव में  घुट-घुटकर जी रही होंगी। तब उन्होंने उसी समय महिलाओं की जिंदगी बदलने का प्रण लिया। बेटे की मौत के बाद उन्होंने अपनी दादी से सीखे हुए कशीदकारी के कार्य को आगे बढ़ाने का फैसला लिया, क्योंकि उनके पास दूसरा कोई और विकल्प नहीं था। सबसे पहले उन्होंने इस काम को खुद किया और फिर उन्होंने 10 महिलाओं का एक सहायता ग्रुप बनाया और हर महिला से 100 रुपए जमा किए। उन पैसों से ही उन्होंने कपड़ा, धागा और प्लास्टिक के पैक्ट्स खरीदकर कुशन और बैग बनाए। शुरुआत के दिनों में जब उन्होंने काम शुरू किया तो परिवार और समाज वाले मज़ाक उड़ाते और ताने मारते, कहते "बहुत आई दूसरों को काम देने वाली पहले खुद को संभाल ले" लेकिन वो सबकी बातों को नज़रअंदाज़ करते हुए आगे बढ़ती चली गई, क्योंकि अपने बेटे की मौत को भूला नहीं पा रही थी। 

शुरुआत के दिनों में उन्हें ग्राहक नहीं मिल पा रहे थे, लेकिन उन महिलाओं ने हिम्मत नहीं हारी और मेहनत के साथ अपने काम को बेहतरीन तरीके से करती चली गई। रूमा देवी को यकीन था कि उनकी मेहनत जरूर रंग लाएगी और फिर उन लोगों को उसी गांव में ग्राहक मिल गए, लेकिन इससे भी उन्हें ज्यादा फायदा नहीं हुआ। तब बाद में वे ग्रामीण विकास चेतना संस्थान से जुड़ीं और अच्छा पैसा कमाने लगीं। रूमा और उनके साथ जुडी महिलाओं ने शुरुआत बैग और पर्दे से की और फिर सलवार सूट और दुपट्टे बनाने लगीं। इसके बाद उन्होंने अपने गांव की महिलाओं के अलावा दूसरी महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने की ठानी और दूसरे गांव में जाकर भी ट्रेनिंग देने लगी। फिर धीरे - धीरे करके उनके साथ काफी महिलाएं जुड़ती चली गई और  ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान बाड़मेर ने भी उनके काम को सराहा। वह 2008 में इसकी सदस्य बन गईं और 2010 को वह इस संस्थान की अध्यक्ष भी बन गईं।

रूमा देवी अपने बिज़नेस को और बड़े स्तर पर लेकर जाना चाहती थी, इसलिए अपने बनाए कपड़ों का प्रमोशन करने के लिए उन्हें फैशन शो की जरूरत थीं। लेकिन जब कहीं बात नहीं बन पाई तो उन्होंने कम बजट में अपना फैशन शो होस्ट किया और अपने बनाए कपड़ों का प्रमोशन करने लगीं। जहां से उन्हें काफी पहचान मिली।  इसके बाद टीवी शो 'कौन बनेगा करोड़पति' में भी रूमा देवी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस दौरान उनका साथ देने के लिए बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनाक्षी सिन्हा मौजूद रही। रूमा देवी ने सोनाक्षी सिन्हा की मदद से अमिताभ बच्चन के 12 सवालों का सही जवाब देकर 12.50 लाख रुपए जीते। इसके अलावा रूमा देवी को हार्वर्ड विश्वविद्यालय अमेरिका में बतौर वक्ता आंमत्रित किया गया। ऐसे करके उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर तक अपनी पहचान बनायी।

ऐसे में रूमा देवी की कहानी हमारे लिए प्रेरणादायक हैं, जिन्होंने रूढ़िवादी समाज को नकारते हुए देश का नाम रोशन किया। कह सकते हैं कि हमें किसी भी परिस्थिति में हार नहीं माननी चाहिए, क्योंकि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती।

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